Tuesday, 19 June 2018

विचित्रता

मैं कुछ दिनों से
एक विचित्र
संपन्नता में पड़ा हूं
संसार का सब कुछ जो बड़ा है
और सुंदर है
व्यक्तिगत रूप से
मेरा हो गया है


Wednesday, 28 March 2018

जिन्दगी का सफर

निकला हूँ सफ़र में, मैं अपना मुक़ाम ढूँढ रहा हूँ
ज़मीन मिल चुकी है, मैं अपना आसमान ढूँढ रहा हूँ
निकल गया था छोड़ घर मैं अपनी ज़रूरतों के लिये
छूट गया था गाँव में, मैं अपना सामान ढूँढ रहा हूँ..