आसमां की तरफ जो उछाला था
हँसके एक शाम कोई ख़्वाब हमने
वही बड़े जतन से जिसे रंग आये थे
सबसे चटकीले लाल-नीले से
जिसकी पैरहन में जड़े थे
ख़ुशियों वाले आँसू कुछ,
किनारों पे जिसकी टाँक दी थी
हमने आँखे अपनी..
आज जब रातों के शामियाने में
उदासी चाँदनी की तरह फैली है
वक्त की नब्ज जरा मद्धम हैं
हवा की साँस जैसे सीली है..
और रूह के तुम्बे से
सन्नाटा सा बजता है
तो सुनो वो ख़्वाब ले आओ
आसमां चुपके से यही कहता है..
हँसके एक शाम कोई ख़्वाब हमने
वही बड़े जतन से जिसे रंग आये थे
सबसे चटकीले लाल-नीले से
जिसकी पैरहन में जड़े थे
ख़ुशियों वाले आँसू कुछ,
किनारों पे जिसकी टाँक दी थी
हमने आँखे अपनी..
आज जब रातों के शामियाने में
उदासी चाँदनी की तरह फैली है
वक्त की नब्ज जरा मद्धम हैं
हवा की साँस जैसे सीली है..
और रूह के तुम्बे से
सन्नाटा सा बजता है
तो सुनो वो ख़्वाब ले आओ
आसमां चुपके से यही कहता है..