Sunday, 24 April 2016

मेरी कलम से ..

अभी
मेरे शब्द हैं मेरे पास
जिनमें भाव हैं और अर्थ भी 
इनमें संदर्भ नहीं हैं
मैं लिख जरूर देता हूँ
प्यार,आसमान,मुस्कान और चाँद
लेकिन
तुमसे अलग रहकर
वे खड़े नहीं रहते
संदर्भ को मैं
नींव मानता हूँ
हम दोनों की,
कविता की
मैं तुम्हारे प्यार को
सात आसमान कह देता हूँ
तुम्हारी मुस्कान
बन उठता है चाँद
तो शब्दों के अर्थ भी
पिघल जाते हैं
नहीं पिघलता है तो
बस तुम्हारा मन ....
तुम्हारा मन
मेरे शब्दों का संदर्भ है
आलंबन है भावों का
और आश्रय मेरा ..
अब इसे ठीक उसी तरह देखो
जैसी कि यह दशा है
तो रंग के भंग हो जाने की टीस
तुम्हें भी महसूस होगी ...

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